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Showing posts from December, 2020

बहू को तो घूमने के आगे कुछ नहीं सूझता

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क्या निशि दो दिन से फोन ही पिक नहीं कर रही; कहाँ बिजी है?? “अरे यार! विंटर ब्रेक में इन लॉज़ के यहाँ जाना है सो पैकिंग चल रही है. मुझे पता था तू समझ जाएगी इसलिए पिक नहीं किया.” “इस बार भी छुट्टियों में वहीँ जाना है. तेरा कहीं और घूमने-फिरने का मन नहीं होता? चल; इस बार हम सभी वैष्णों माता के दर्शन के लिए चलते हैं.” “अरे यार! सोमेश कहते हैं उधर टेरेरिस्ट अटैक हो सकता है. अब मैंने कुछ कहना बंद ही कर दिया है.” “सारी दुनिया जाती है; वो तो नहीं मरते. ये घटिया-से बहाने सोमेश को सूझते कहाँ से हैं.” “ये घुट्टी इनके पापा ने पिलाई है तो मम्मी को ये सब फिजूलखर्ची लगता है. इसलिए हम हर हॉलिडे उनके घर जाकर कैदियों की तरह बिताते है. अब छोड़ यार! पैकिंग करने दे. मैं रखती हूँ.” ट्रिनन्न्न्नन्न्न्नन्न “ओह्ह्ह! फिर एक कॉल! आज शायद पैकिंग अधूरी ही रहेगी. हाय भाभी! कैसे हो?” “सब ठीक है निशि. बस ये बताने के लिए कॉल किया है कि तेरे भैय्या ने वैष्णो देवी दर्शन का प्लान फाइनल कर लिया है. इस बार कोई बहाना नहीं. दामाद जी न आये कोई बात नहीं. तुम्हें और बच्चों को चलना ही है. पापाजी-मम्मीजी भी बहुत जोर...

परित्यक्ता ही क्यों; परित्यक्त क्यों नहीं?

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"मरे हुए पति का सब्र आ जाता है लेकिन छोड़े हुए का नहीं. हमारे समाज में विधवा के जीवन से भी ज्यादा मुश्किल तलाकशुदा  का जीवन है. एक बार फिर विचार कर ले गरिमा! कैसे पालेगी दो-दो बच्चों को अकेले." "जैसे अभी पाल रही हूँ आंटी! विनोद का होना न होना बराबर है. मुझे ही जॉब करके इनकी पढाई का खर्च उठाना होता है , घर-बाहर सब मैं ही तो देखती हूँ." "लेकिन बेटा! अभी लोग तुझे सम्मान की नज़र से देखते हैं. बाद में वही लोग तुझ पर आक्षेप लगाएंगे. तेरा बाहर निकलना मुश्किल कर देंगे. समाज के ताने तुझे छलनी कर देंगे." "मैंने को समाज को खुश रखने का कोई ठेका ले रखा है. एक झगड़ालू और नाकारा आदमी के साथ मैं सिर्फ इसलिए रहूँ कि ये समाज का नियम है , उसकी इच्छा है! और मेरी इच्छा कुछ नहीं." "अब दो बच्चों की जिम्मेदारी के बाद तेरी कौनसी इच्छा बाकी है ?" "सुकून से जीने की इच्छा! इस उम्र में दुबारा शादी करने का मैं सोच भी नहीं सकती क्योंकि हो सकता है मुझे भले ही पति मिल जाये लेकिन मेरे बच्चों को कभी पिता का प्यार नहीं मिलेगा. मैं अपने बच्चों को माँ-पिता - दोन...

अनैतिकता में न दें पति का साथ

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 “अरे हिमानी! आज इतनी उदास क्यों लग रही हो?” “आंटी! बात ही कुछ ऐसी है. वैसे मैं आपसे इस बारे में बात करना ही चाहती थी. रोहन की एक बात ने मुझे बेहद परेशानी में डाल रखा है.”  "अरे! इस पूरी सोसाइटी में तुम आदर्श कपल के रूप में जाने जाते हो. ऐसी भी क्या बात हो गई?" "कुछ गंभीर मसला है आंटी. हर किसी से तो कह भी नहीं सकती." “बात करने से तो हर बात का हल निकलता है. बताओ मुझे.” “रोहन ने महीने भर पहले मुझसे कहा कि उनको हमारी सेक्स लाइफ में कुछ नया चाहिए और वो चाहते है कि इसके लिए मैं अपनी किसी फ्रेंड से बात करूं.” “तो लाइफ तो तुम्हारी है; इसमें फ्रेंड से क्या बात करनी है?” “वो रोहन की बेड पार्टनर बनें.” “व्हाट? आर यू क्रेजी!! कोई भी लड़की इस बात के लिए क्यों राजी होगी और तुम ये बर्दाश्त कैसे करोगी??” “उन्हें इसलिए कोई करीबी कपल चाहिए ताकि उसके हस्बैंड के साथ मैं इन्वोल्व हो जाऊं. ऐसा गंदा ऑफर रखा है रोहन ने मेरे सामने. मैंने हमेशा हम दोनों को राम-सीता की तरह एक-दूसरे के लिए समर्पित माना है पर अब ये सुनकर मेरा दिमाग सुन्न हो गया है.” सीता जैसी आदर्श पत्नी उसी हाल में रहना चाहिये...