बहू को तो घूमने के आगे कुछ नहीं सूझता
क्या निशि दो दिन से फोन ही पिक नहीं कर रही; कहाँ बिजी है??
“अरे यार! विंटर ब्रेक में इन लॉज़ के
यहाँ जाना है सो पैकिंग चल रही है. मुझे पता था तू समझ जाएगी इसलिए पिक नहीं किया.”
“इस बार भी छुट्टियों में वहीँ जाना
है. तेरा कहीं और घूमने-फिरने का मन नहीं होता? चल; इस बार हम सभी वैष्णों माता के
दर्शन के लिए चलते हैं.”
“अरे यार! सोमेश कहते हैं उधर
टेरेरिस्ट अटैक हो सकता है. अब मैंने कुछ कहना बंद ही कर दिया है.”
“सारी दुनिया जाती है; वो तो नहीं
मरते. ये घटिया-से बहाने सोमेश को सूझते कहाँ से हैं.”
“ये घुट्टी इनके पापा ने पिलाई है तो
मम्मी को ये सब फिजूलखर्ची लगता है. इसलिए हम हर हॉलिडे उनके घर जाकर कैदियों की
तरह बिताते है. अब छोड़ यार! पैकिंग करने दे. मैं रखती हूँ.”
ट्रिनन्न्न्नन्न्न्नन्न
“ओह्ह्ह! फिर एक कॉल! आज शायद पैकिंग
अधूरी ही रहेगी. हाय भाभी! कैसे हो?”
“सब ठीक है निशि. बस ये बताने के लिए
कॉल किया है कि तेरे भैय्या ने वैष्णो देवी दर्शन का प्लान फाइनल कर लिया है. इस
बार कोई बहाना नहीं. दामाद जी न आये कोई बात नहीं. तुम्हें और बच्चों को चलना ही
है. पापाजी-मम्मीजी भी बहुत जोर दे रहे हैं कि निशि कभी नहीं गई दर्शन के लिए.”
“पर भाभी! आपको पता है ना पिछली बार
गिरिराज जी की परिक्रमा पर चली थी तो कितना सुनाया था मम्मीजी ने. पति और सास-ससुर
घर बैठे रहे और बहू तीर्थ करने जाये तो कोई फल नहीं होता. पहले सबकी सेवा फिर बाहर
भटकना.”
“यार! मुझे भी पता है वो अव्वल दर्जे
के कंजूस है. तुझे कहीं नहीं ले जाते पर अगर हम सब साथ है तो उनका कोई खर्च नहीं
लगेगा. हमने तो पिछली बार भी उन्हें भी साथ चलने का ऑफर किया था. अगर वो उस दडबे
में अपनी पूरी जिंदगी गुजरना चाहते हैं तो तुम क्यों अपनी इच्छा मारती हो. सोचो
बच्चे कितने खुश होंगे सबसे मिलकर, नई जगह जाकर.”
“सास-ससुर सुनाये तो ठीक है लेकिन खुद
सोमेश वापिस यहाँ आकर कई महीनों तक ताने मारते हैं कि मेरे बूढ़े माँ-बाप बच्चों के
साथ को तरसते हैं और तुम उन्हें लेकर मायकेवालों के साथ घूमने निकल पड़ती हो.
तुम्हारे मायके वालों को थकान नहीं होती क्या ट्रेवलिंग से? अब आप लोगों के बारे
में सुनना भी अच्छा नहीं लगता इसलिए अब मन ही नहीं होता कहीं जाने का.”
“तो फिर तेरे भैय्या बात कर लेंगे
सोमेशजी से. उनको थोड़े ही मना करेंगे जाने के लिए. ज्यादा से ज्यादा खुद के जरूरी
काम का बहाना बना लेंगे.”
“भाभी! इनके मम्मी-पापा मेरे हर काम
में दखलंदाजी करते हैं लेकिन मेरे भाई का इतना-सा लाड भी इन लोगों को नागवार
गुजरता है. इसलिए मैंने अपने ही मन को समझा लिया कि कौन रोज-रोज की चिक-चिक पाले
और इन लोगों से बहस करे. आप लोग माँ के चरणों में मेरी ओर से प्रणाम करके
प्रार्थना करना कि मुझे जल्दी दर्शन के लिए बुलाये.”
“तुम शादी से पहले तो इतना
कम्प्रोमाइज कभी नहीं करती थी. हो क्या गया है तुम्हें.”
“अब भाभी! आपने भी तो बहुत-से
कम्प्रोमाइज करके ही घर में अपनी जगह बनाई है. शायद कभी मेरी भी बन जाये. यही
सोचकर...”
“बस इस बात के लिए न जाने कितनी निशि कब तक अपनी इच्छाओं का गला घोंटती रहेगी. पर इस बार नहीं. हम खुद सोमेशजी से मिलकर आमने-सामने इस बारे में बात करेंगे.तू अपनी तैयारी पक्की रख.”

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