2. मुझे विदा दे दो
कभी कलम यूँ मुझसे खफ़ा हो जाती है,
लाख उठाओ पर दो हर्फ़ भी लिख न पाती है,
बड़े जालसाज-से दिन होते हैं वे
जब पोर स्याही सने होने को तरस जाते हैं,
फिर कभी आलम यूं अंगड़ाई लेता है,
शब्दजाल बुनते हुए मानस परेशां होता है,
वो शैदाई रात का प्याला करवटों से भरा होता है,
छिन जाता है सुकूं बरबस
मुश्किल गुजारा होता है|
बिस्तर पर चादर की सलवटें,
बेचैनी की गवाही देती है,
बेतरतीब फैले कोरे कागज़,
जब लफ्जों से दरफ्शां होते है,
कुछ मिल जाता है नेमत जैसा,
ये अहसास शब्दों में बयाँ न होता है,
इक जोगी का जोग जैसे सध जाता है,
सच्चे आशिक को माशूक मिल जाता है,
बेसुखन ज्यों स्वाद बयाँ न कर पाता है,
ऐसा गुमां कलम चलाते आता है,
ले लो मुझसे सब सांसारिक,
पर डूबने दो ख़ुद ही में,
मुझे ख़ुदी का असली स्वाद तभी आता है,
जब कागज़-कलम मेरे सिरहाने-पैताने दिखता है,
यही मेरी इबादत, मेरी साधना है,
रम जाऊं अपने भीतर, यही प्रबल वासना है,
मेरे हिस्से के सुख संसारी, किसी को दान में दे दो,
छोड़ दो मुझे एकांत में, बस एक यही नेमत दे दो,
ना पूछो कि क्या खुमार मुझ पर छाया है,
क्यों मैंने मीरा बन संसार ठुकराया है,
गर ये पहेली सुलझी होती तो संसार में रमी रहती,
कुछ पहेलियों को बनी रहने दो,
कागज़-कलम की भेटं सहित मुझे विदा दे दो|
कभी कलम यूँ मुझसे खफ़ा हो जाती है,
लाख उठाओ पर दो हर्फ़ भी लिख न पाती है,
बड़े जालसाज-से दिन होते हैं वे
जब पोर स्याही सने होने को तरस जाते हैं,
फिर कभी आलम यूं अंगड़ाई लेता है,
शब्दजाल बुनते हुए मानस परेशां होता है,
वो शैदाई रात का प्याला करवटों से भरा होता है,
छिन जाता है सुकूं बरबस
मुश्किल गुजारा होता है|
बिस्तर पर चादर की सलवटें,
बेचैनी की गवाही देती है,
बेतरतीब फैले कोरे कागज़,
जब लफ्जों से दरफ्शां होते है,
कुछ मिल जाता है नेमत जैसा,
ये अहसास शब्दों में बयाँ न होता है,
इक जोगी का जोग जैसे सध जाता है,
सच्चे आशिक को माशूक मिल जाता है,
बेसुखन ज्यों स्वाद बयाँ न कर पाता है,
ऐसा गुमां कलम चलाते आता है,
ले लो मुझसे सब सांसारिक,
पर डूबने दो ख़ुद ही में,
मुझे ख़ुदी का असली स्वाद तभी आता है,
जब कागज़-कलम मेरे सिरहाने-पैताने दिखता है,
यही मेरी इबादत, मेरी साधना है,
रम जाऊं अपने भीतर, यही प्रबल वासना है,
मेरे हिस्से के सुख संसारी, किसी को दान में दे दो,
छोड़ दो मुझे एकांत में, बस एक यही नेमत दे दो,
ना पूछो कि क्या खुमार मुझ पर छाया है,
क्यों मैंने मीरा बन संसार ठुकराया है,
गर ये पहेली सुलझी होती तो संसार में रमी रहती,
कुछ पहेलियों को बनी रहने दो,
कागज़-कलम की भेटं सहित मुझे विदा दे दो|

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