4. आवारा चाँद
जब भी उस सितमगर का जिक्र चलता है
एक कहर-सा जिस्मों-जां पर गुजरता है
आज भी वो कहकशां की मानिंद
मेरे अल्फाजों की दुनिया को छलता है,
कहने को वो बेगाना है फिर क्यों,
पूरी दुनिया से हटकर खासो-खास लगता है,
उसकी रूहानियत जिस्म में ढल न सकी,
इसी बात से वो मुझे आवारा चाँद लगता है,
बेवजह वो मेरे इंतजार में तारे गिनता है,
मुझे तो खुद में खो जाना ही पाकीज़ा लगता है,
कासिद से कह दो उसे मेरे न आने की खबर दे,
उसका तराना अब मुझे नामाकूल लगता है,
मेरी शब की गुमनामियां ये रंग लाई कि
अब सहर का इस्तकबाल कमाल लगता है,
दिलजले अब करने लगे जीना गवारा,
उसकी बेसब्री का चर्चा आम लगता है,
रुख से पर्दा हटा भी दें तो ऐतराज क्या,
अब उसका दीदार नामुनासिब लगता है,

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