6. सितारों का जहां
वो शोख अल्हड़पन का दौर पीछे छोड़ आई हूँ,
तापसी बनने के सफर में कुछ शौक भूल आई हूँ,
वो पहली बारिश में भीगने का जूनून,
लगता है अब काफी दूर निकल आई हूँ|
कहाँ गई वो फूलों को छूने की सिरहन,
अब काँटों से भी निर्लिप्त होने की फितरत,
किसी के रूठने पर दिल का नाखुश होना,
अब टूट भी जाये कोई तो बेखुदी में रहना|
रंजिशों-गम से बेजार लोगों से तकल्लुफ़,
क्यों बार-बार किस्मत पर बेकार रोना,
पासबां का पास होना भी बेकार होना,
बस उसी की खुदी का इल्म होना,
बेसबब ही जमाने को दर्दे-दिल का दोष देना,
अपनी नाराजगियों को माकूल-सा चोला पहना देना,
बुझे दिल के इल्जामों के दौर उसके सिर मढ़ना
नूर जागने से पहले शमा बुझा देना|
वो दुनिया भरम की थी या मैं जाग गई हूँ,
वो खुद से बतियाने का दौर; मैं कहाँ आ गई हूँ,
अब तो ये तामीर हावी है कि
मैं चलते-चलते सितारों के जहाँ में आ गई हूँ|
Comments
Post a Comment