9. दिव्य विजय
काश, जीवन कुछ ऐसा उन्मादी हो जाये
काश, इक दिव्य विजय की तैयारी हो जाये
ना जीतना है इस जग के महल-खजाने को
प्रस्तुत होना है, सोई चेतना को जगाने को
उस लम्बी यात्रा में मैं सफल हो जाऊं
आगामी पथिकों के लिए लाइट हाउस बन जाऊं
ज्यों ध्रुव तारे ने भटकों को मार्ग दिखाया है
उस दिव्य पथ को कोई भी औचक पकड़ न पाया है
खो जाते हैं कई पथिक विस्मृत होकर
थक जाते हैं आधी मंजिल तय कर
मैं बनूं नियंता उन थके-हारों की 
स्व-प्रकाशित हो प्रदर्शक बनूं उन दीवानों की
नाम जप या हठयोग, कोई भी आलंबन ले लो
पर इस दिव्य यात्रा को मध्य में मत रोको
ऐसी लाइट हाउस बन उस दिव्यात्मा को पा जाऊं
सबको राह दिखाकर दिव्य विजय की भागी हो जाऊं|

Comments

Popular posts from this blog

परित्यक्ता ही क्यों; परित्यक्त क्यों नहीं?

अनैतिकता में न दें पति का साथ

चपाती और सेकूं क्या?