प्रशस्त पथ



नेमतें गिनने वाले आत्मविश्वास पा जाते हैं,

शिकायत करने वाले भीड़ में गुम हो जाते हैं,

गर सपने ऊँचे देखे है तो प्रयास चौगुना करो,

फिर हार भी जाओ तो प्रयास करना न छोडो,

मंजिल मिलती नहीं यूँ ही राह में भटकते,

रखनी होती है एकाग्र नजर अर्जुन सदृश,

पहले अपना लक्ष्य निर्धारित कर सावधान बनो, 

फिर कृष्ण-से सखा को अपना सारथी चुनो,

फिर अभ्यास वैराग्य से खुद को पक्का करो,

आँखें जमाओ कुछ इस जज्बे से, पलक झुकने न पाये,

रात-दिन अपने लक्ष्य को मन में गुणों,

काम आने वाले साधनों पर मेहनत करो, 

अपने बाणों को तीखा करना कभी न भूलो,

गर धार होगी अस्त्र, शस्त्र और जज्बे में,

कट जायेगी सब बाधाएँ मात्र एक झटके में,

अपने विचारों के प्रति भी सदा सावधान रहो,

कोई नकारात्मकता गलती से आये तो उसे परे हटाओ,

ऊर्जावान स्पंदनों को ही सदा मन में भरो,

आप्त जनों, गुरुजनों की वाणी का नित्य चिंतन करो,

मिले हुए दिशा-निर्देशों का पालन करो,

स्वकर्म से पथ अपना प्रशस्त करो,

राह में निराशा घेरे तो भी कभी न डिगो,

खुद से बात करके, उसे परे झटको,

आगे बढ़ते हुए इक दिन ऐसा आएगा 

आँखों के आगे खड़ा साहिल बाहुपाश फैलायेगा,

करेगा स्वागत तुम विजयी का पूर्ण भाव से,

जमाना आदर्श मान तुम्हें पूजेगा सम्मान से,

उस उत्कर्ष में भी आत्माभिमान को कभी न भूलो,

आखिर ये देह छूटेगी, कर्म अमर होंगे, ये स्मरण रखो|

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