बच्चा न होना कोई शाप नहीं
“राकेश! ऐसा कीजिये आप 10 किलो लड्डू और आर्डर कर दीजिये अभी. वो पहले वाले तो खत्म हो गए, अभी मुझे कई जगह और पैकेट्स देने है.”
“सुबह से मिठाई बाँट रही हो शारदा अब थोड़ा ब्रेक भी ले लो. बाकी के कल बाँट देना यार!”
“नहीं! मैंने मन्नत माँगी थी और ठाकुरजी ने मेरी लाज रख ली. मैं आज ही सभी जगह प्रसाद बाटूंगी. फिर तृषा से मिलने चलेंगे.” शारदा की आँखे नम थी.
तृषा उसकी ननद की बेटी थी और आज उसके बेटा हुआ था. तृषा को उसने बेटी की तरह पाला था. लोग कहते थे कि क्या बड़ी बात है; खुद के बच्चा नहीं है इसलिए ननद की बेटी को प्यार देती है; अगर खुद के होता तो उसे घर भी न बुलाती. उसकी आँखों के आगे पिछले साल का वो दिन आ गया जब तृषा की शादी के 5 दिन पहले विनायक जी की स्थापना हो रही थी और उसकी ननद रश्मि और नंदोई आनंदजी ने राकेश व शारदा को पूजा में बैठने को कहा.
“अरे रश्मि! तुम भी कमाल करती हो; अपनी इकलौती बेटी का कन्यादान शारदा से करवा रही हो. तुम्हें जरा भी आशंका नहीं होती?” रश्मि की भुआ सास ने सख्त लहजे में कहा.
“आशंका कैसी भुआजी! वो मेरी भाभी है और तृषा को उन्होंने बेटी की तरह पाला है तो उसका कन्यादान करने का हक़ बनता है उनका.”
“कल को अगर तृषा भी उसकी तरह बाँझ रह गई तो!”
“यही तो विडंबना है कि आप चार बच्चों की माँ होकर भी तृषा के लिए नेगेटिव थॉट क्रिएट कर रही है और वो माँ न बन सकी पर तृषा पर मुझसे भी ज्यादा ममता लुटाती है.”
“हाँ भुआजी; जरूरी तो नहीं जो दर्द सहे वही माँ है, कुछ दर्द अंदर के भी होते हैं जो एक औरत को माँ बनाते है. क्या रेगिस्तान में बहने वाली नदी प्यास नहीं बुझाती क्या?” आनंद ने रश्मि का समर्थन किया.
“उस बाँझ ने भात में पाँच लाख क्या खर्च कर दिये दोनों पति-पत्नी उसी के गुण गा रहे है. कल को कोई अनहोनी होगी तब मुझे याद करेंगे.” बडबडाते हुए भुआजी तो निकल गई पर अठारह साल से एक अदद बच्चे को तरसती शारदा के दिल पर एक नुकीला तीर चुभा गई.
लाख मना करने पर भी रश्मि ने फेरे के समय उसे ही बैठाया. पूरे समय वो ठाकुरजी से प्रार्थना करती रही कि अगले साल तक तृषा की गोद में बच्चा खेले ताकि तुम पर कोई इल्जाम न आये. मुझे तो अब ‘बाँझ’ शब्द की आदत हो गई है पर मैं नहीं चाहती कि तृषा के प्रति मेरी ममता और तुम्हारे प्रति मेरी श्रद्धा पर कोई अंगुली उठाये. अगर जल्दी ही उसकी गोद हरी नहीं हुई तो लोगों को मेरा अपमान करने का एक और मौका मिल जायेगा वो वास्तव में तुम्हारे विधान का ही अपमान होगा.
अभी एक साल ही तो हुआ है और तृषा को बेटा हो गया. अब शारदा को लड्डू बाँटने से कौन रोक सकता था. औरत इतनी साहसी होती है कि ईश विधान को हँसकर स्वीकार कर लेती है लेकिन क्यों अलाने-फलाने रिश्तेदार उसे तानाकशी से प्रताड़ित करते है. अब ये सवाल तो भुआजी से पूछना चाहिये.

आपकी बातों से सहमत हूँ 🙌🙌
ReplyDeletedhanyvad
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