जो अपना बन जाये; वही सहारा

 


उपमा और अनुज की शादी को पूरे सात साल होने को आये लेकिन उन्हें माँ-पापा बनने का सौभाग्य नहीं मिला. जब उपमा के देवर की शादी हुई तो सोनाक्षी घर में छोटी बहू बनकर आई. दो महीने बाद ही जब उसके प्रेग्नेंट होने की खबर मिली तो पूरे घरवालों की खुशियाँ चौगुनी हो गई. उपमा उसका बहुत ख्याल रखती. उसके खाने-पीने से लेकर उसकी हर सुविधा के बारे में सचेत रहती. सोनाक्षी के मन में उसकी दीदी ने ये बात डाल दी थी कि भविष्य में उपमा उसके बच्चे पर अधिकार जमाना चाहती है इसलिए इतनी अच्छी होने का दिखावा कर रही है.

अब सोनाक्षी खुद को लेकर काफी पजेसिव हो गई थी. जब भी उपमा उसकी मदद करती, वो दूर-दूर होने की कोशिश करती. एक दिन उपमा बाजार से होने वाले बच्चे के लिए बड़े चाव से कपड़े ले आई तो सोनाक्षी ने नाक सिकोड़कर कहा, “क्या भाभी! आपकी चॉइस एवरेज है. मेरा बच्चा ऐसे कपड़े नहीं पहनेगा. उसके नाना उसके लिए बहुत शानदार कपड़े लायेंगे.”

उपमा ने बिना एक शब्द कहे, वो सब कपड़े अपनी अलमारी में लाकर रख लिए और कृष्ण की बड़ी-सी तस्वीर को भरपूर निहारकर मन ही मन कहा, “अब तुम्हीं जानो कि ये कपड़े किसे पहनाओगे! अगर मेरी सूनी गोद ही तुम्हारा निर्णय है तो यही सही.”

उसकी सास इन सब बातों से दुखी तो होती लेकिन उन्होंने सोनाक्षी को कभी कुछ नहीं कहा. आख़िरकार वो दिन आ ही गया जब सोनाक्षी के बेटे का जन्मोत्सव मनाया जा रहा था. उपमा चुपचाप काम कर रही थी. बाहर रिश्तेदारों के व्यंग्यबाण भी बड़े सलीके-से चल रहे थे. मसलन – “सोनाक्षी ने आते ही इस घर को वारिस दे दिया लेकिन बेचारी उपमा तो सूनी ही रह गई.”

“आजकल तो हर तरह के इलाज होते है क्या उपमा ने कोशिश नहीं की.”

“पता नहीं इसमें कमी है या पति में?”

“चलो भाई; आज तो बड़ा आनंद आया; जल्दी ही उपमा के की गोद भरे तो हम फिर से ऐसे ही जन्मोत्सव मनाये.”

ऐसे ही दिन बीतते-बीतते सोनाक्षी का बेटा 2 साल का हो गया. वो अक्सर उसकी परवरिश के बहाने घर के काम से जी चुराती थी. उपमा बिना शिकायत सब काम कर लेती थी. एक दिन उसकी सास ने छोटी बहू से कहा, “बेटा! अपना मानो तो तुम्हें एक बात कहनी है. तुम एक चांस ले लो. अपनी कोख से जन्मा दूसरा बच्चा उपमा की गोद में डाल दो. इससे हमारे घर की खुशियों में चार चाँद लग जायेंगे.”

“आप भी मम्मी! क्या सोचकर कुछ कह रही है. बड़ी तकलीफ सहनी पड़ती है नो महीने, फिर लेबर पेन, तब जाकर बच्चा दुनिया में आता है. और फिर अपने ही तन-मन के अंश को किसी और को पकड़ा दो. मुझसे नहीं होगा ये सब. अब भगवान ने ही भाभी की किस्मत में कोई सहारा नहीं लिखा तो मैं तो भगवान बन नहीं सकती.”

उसकी बात से बाकी लोगों को तो न जाने कितनी तकलीफ हुई पर अनुज के सीने पर पहली बार इतना तेज नश्तर लगा. उसका छोटा भाई मनुज उससे पाँच साल छोटा था. उसे बचपन से अब तक उसके साथ बिताये एक-एक पल का भान हो रहा था. कैसे वो अपनी हर खास चीज मनुज से बाँटे बिना नहीं रह सकता था. और आज वो अपनी पत्नी से इतना नहीं कह सकता कि वो उसके बच्चे को अपना मानने का अधिकार दे दे.

उसने एक अनाथालय में नामांकन करके अपने वकील दोस्त से पूरी बात कर ली. खुशकिस्मती से दो महीने में ही अनाथालय से फोन आया. उसने उपमा से तैयार होने को कहा. वो पूछती ही रह गई कि कहाँ जाना है.

अनूप ने सिर्फ इतना कहा, “अपना सहारा लेने.”

अनाथालय जाते ही उसने उस चार दिन की बच्ची को गोदी में ले लिया जिसे कोई मजबूर माँ चुपचाप यहाँ छोड़ गई थी. दोनों ख़ुशी-ख़ुशी उसे घर ले आये. उपमा ने अलमारी खोलकर उसे वो कपड़े पहना दिए जो उसने बहुत भारी मन से अलमारी में रख दिए थे. गुड़िया को गोद में लेकर उपमा की आँखे बार-बार ख़ुशी से भीग रही थी. अनुज की माँ ने ख़ुशी-ख़ुशी जन्मोत्सव मनाया. कुछ लोगों ने तानाकशी की, “न जाने किस जात की है, कैसी माँ होगी जिसने इसे छोड़ दिया.”

“गोद लिया बच्चा कब किसका सगा हुआ है.”

“फिर बाहर से ही लाना था तो बेटा तो ले आते. लाये भी बेटी है जो बीस साल बाद दूसरे घर चल देगी.” सोनाक्षी ने भी तीर चला ही दिया.

उत्सव के बाद अनुज की माँ ने सबको कहा, “मैं शुक्रगुजार हूँ उस अनजानी ओरत की; जिसने मेरी उपमा को माँ बनने का सौभाग्य दिया. कई लोग इतने घमंडी होते है कि अपनों का सहारा नहीं बन सकते लेकिन उस पराई ओरत ने अनजाने ही सही मुझे ये प्यारी-सी पोती देकर जन्मों का कर्ज चढ़ा दिया है. लड़का ही सहारा देता है और बेटी चली जाती है; ये बात भी संस्कारों पर निर्भर करती है. जब कुछ अपने ही सहारा बनने लायक नहीं होते तो जरूरी नहीं कि बेटा भी सहारा दे. इस बच्ची को उपमा की परवरिश मिलेगी तो देखना ये बहुत ही सेवाभावी और संस्कारी बनेगी.”

दोस्तों! हो सकता है इन बातों से भी ऐसे बददिमाग लोगों की बोलती बंद नहीं होगी पर सच बात यही है कि सहारा बनने के लिए कोख से जन्म लेना जरूरी नहीं है. जहाँ सच्ची ममता और अच्छे संस्कार होते हैं; वहीँ सहारा मिलता है.     


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