हाय बहू! तूने पति का नाम लिया


“क्या दीदी आप भी जब देखो “उन्होंने, इनने, ये” कहते रहते हो जीजू को; जैसे उनका कोई नाम ही न हो! मिताली ने हँसकर कहा.

“तो क्या नाम लेकर आवाज दूँ? कहते है नाम लेने से पति की आयु कम होती है. तेरी भी अब शादी वाली उम्र है. आगे ध्यान ही रखना.”

“मैं नहीं मानती इन दकियानूसी बातों को.”

“तेरी सास सब मनवा देगी. किसी भी माँ को ये बर्दाश्त नहीं होता कि उसकी बहू, उसके बेटे का नाम ले. चल अभी बहस छोड़; मुझे इनके लिए खाना बनाना है.”

दो साल बाद मीनल की शादी आकाश से तय हो गई. कोर्टशिप के दिन बेहद मजेदार गुजर रहे थे. “रफ्ता-रफ्ता वो मेरी हस्ती के सामां हो गए; पहले जाँ फिर जानेजां फिर जानेजाना हो गये” - इसी तर्ज पर पहले दोनों आप से तुम पर आये और अब वो उसे मीनू तो वो उसे अक्की कहकर बुलाने लगी.

अब विदा होकर मीनल ससुराल आ गई. पूरा हफ्ता मेहमानों के आने-जाने में गुजर गया. उसकी सास कांति जी उसे बराबर नोट कर रही थी. आखिर उन्होंने उसे सख्त हिदायत दे ही दी कि वो आकाश को नाम लेकर बिल्कुल न पुकारे.

एक दिन आकाश सेटरडे को भी ऑफिस गया था और मीनल की छुट्टी थी. कांति जी ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी और उन्हें डिजिटल-टेक्निकल चीजों का ज्यादा ज्ञान नहीं था. डोरबेल खोलने पर सामने एलपीजी सिलेंडर वाला खड़ा था. उसने आकाश की मेल आईडी वगैरह के बारे में पूछा तो उन्होंने मीनल को आवाज दी.

वो बाहर आकर डीटेल्स बताने लगी. अब मेल आई डी में आकाश का नाम आना तो लाजिमी ही था इसलिए उसने बता दिया. कांति जी कड़वा घूँट पीकर रह गई. थोड़े दिनों बाद उसे किसी गायनकलोजिस्ट के पास जाना था. उसने आकाश से बात की. आकाश ने उसे समझाया कि पापा के देहांत की वजह से मम्मी कुछ ज्यादा ही पजेसिव हो गई है. अगर वो हम दोनों के साथ जाने में ऑब्जेक्शन करें तो तुम उनके साथ चली जाना. मैं कल का अपॉइंटमेंट ले लेता हूँ. मीनल को ऑफिस के लिए तैयार न होते देख कांति जी ने कारण पूछा तो उसने कहा कि उसका डॉक्टर से अपॉइंटमेंट है. उनके दस-बीस सवालों का सिलसिला जब आखिर रुका तो उसने आकाश के साथ जाने की मंशा दिखाई.

“अब लेडी डॉक्टर के यहाँ इसका क्या काम. मैं ले चलूंगी तुम्हें. आदमी ऑफिस जाये या बीवी की तीमारदारी में लगा रहे.” इस तरह के कटाक्षों की आदत डाल ली थी मीनल ने.

डॉक्टर के यहाँ जब रिसेप्शन पर फाइल बनने लगी तो मीनल से नाम, एज आदि पूछे जाने लगे. कांति जी जल्दी-जल्दी बोलने लगी. रिसेप्शनिस्ट ने कांति जी को टोका, “कंसल्ट इन्हें करना है या आपको? क्या इन्हें बोलना नहीं आता.” तब जाकर वे चुप हुई. अब जैसे ही मीनल से हस्बैंड का नाम पूछा गया उसने बता दिया. कांति जी का मुँह फूल गया.

रात को डिनर के बाद मीनल सोने चली गई तो कांति जी आकाश से कहने लगी, “बेटा! बहू जॉब करती है, इसका ये मतलब नहीं कि वो मेरी कोई बात न मानें. देख आज फिर उसने मेरे सामने तेरा नाम लिया. क्या रिसेप्शन पर मैं एंट्री नहीं करवा सकती थी.”

“माँ! आप ये क्यों नहीं सोचती कि अभी उसे इस घर में आये सिर्फ तीन महीने हुए है और फिर भी उसने आपकी कई बातें मानी है. उसने एकबार भी मुझे डॉक्टर के यहाँ साथ चलने की जिद नहीं की जबकि आजकल यही ट्रेंड है. बाहर निकलकर आप आज की मॉडर्न लड़कियों को देखेंगी तो समझ जायेगी कि वो उनसे कहीं ज्यादा आपकी बात मानती है.”

“मुझे उम्मीद नहीं थी कि तू उसका इस तरह पक्ष लेगा. मैं तो तेरी लंबी आयु चाहती हूँ बस.” वो सुबकने लगी.

“मम्मी! मुझे याद है, जब मैं छोटा था तबसे आपने आजतक पापा का नाम नहीं लिया. किसी के पूछने पर आप ‘सीता माता के पति’ कहकर लोगों को समझाती थी. अब आप चाहती है मीनल ऊपर आसमान की तरफ इशारे करके मेरा नाम बताये. आपने कभी अपने मुँह से रामचंद्र जी नाम नहीं लिया लेकिन पापा समय से पहले ही दुनिया छोड़कर चले गए. उनकी आयु क्यों घट गई?? मैं उसका पक्ष नहीं ले रहा; आपको व्यावहारिक बात समझाने की कोशिश कर रहा हूँ. हम तीनों की आपसी समझ से ही घर की शांति कायम रह पायेगी.” आकाश ने माँ का हाथ सहलाया.

रात काफी हो चुकी थी और आकाश सोने की तैयारी करने लगा और कांति जी अब भी खुद को उलझनों में घिरी पा रही थी.

दोस्तों! आपकी उम्र का चाहे जो भी पड़ाव चल रहा हो, आप इस मूलमंत्र को मत भूलिए कि आपको पुरानी थाती जरूर सहेजकर रखनी है लेकिन ऐसी किसी भी कुरीति को हावी नहीं होने देना है जो आपके घर की शांति को भंग करें.   


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