आपकी बेटी की सगाई क्यों नहीं हो रही?
“पता नहीं सतीश भैय्या
और सुभद्रा को कैसे नींद आ जाती है. पूरे 30 की होने आई शालिनी. यहाँ तो अनु के 18
पूरे करते ही मुझे इसकी शादी की ऐसी चिंता लगी कि दो साल में ब्याहकर ही दम लिया.”
रूपा ने अपने देवर-देवरानी की शिकायत अपनी बड़ी ननद को की.
“पर रूपा! अनु की
जिंदगी सुखद तो नही रही. न पढाई पूरी हुई और जल्दी माँ बनने से अनगिनत रोग लग गए
शरीर में. तुम थोड़ा तो रूकती.”
“तो शालिनी का शरीर
कौनसा हृष्ट-पुष्ट रहेगा. बड़ी उम्र में तो माँ बनना ज्यादा मुश्किल हो जाता है.”
“बात वो भी सही है
लेकिन इसमें सतीश और सुभद्रा की क्या गलती है? वे तो पिछले छ सालों से लड़का देख
रहे है लेकिन आजकल जन्मपत्री मिलान का ऐसा रिवाज चल गया है कि कोई समझौता करने को
तैयार नहीं. पर इस बीच में शालिनी ने सी ए, एम बी ए करके जॉब शुरू कर दी है. ये
मुझे बड़ा अच्छा लगा.”
“हाँ; उसी जॉब के
कारण तो उसके नखरे बढ़ गए है. मेरे भांजे का शानदार बिजनेस है. रिश्ता भेजा पर मना
कर दिया सतीश भैय्या ने. करोड़ों का बंगला है, गाड़ी, नौकर-चाकर सब है.”
“पर लड़का तो सिर्फ
बारहवी पास है. इतने कम पढ़े-लिखे को कैसे बेटी दे दे. रिश्ता बंगला देखकर नहीं
लड़के की योग्यता देखकर करना चाहिये.”
“हाँ भाई! मत करो
मेरे भांजे से, उसके लिए रिश्तों कि क्या कमी है. रोज आते है कितने ही रिश्ते.
मेरी दीदी तो जन्मपत्री भी नहीं मानती. उसकी तो हो जायेगी पर शालिनी जरूर बूढी हो
जायेगी.”
रूपा से बहस में कोई
नहीं जीत सकता सो दीदी चुप रह गई पर उस छोटे कस्बे में कोई चुप नहीं रहता था. सब
आग में घी डालने का काम करते थे. दूसरों की बहू-बेटियों की निगरानी का ठेका ले रखा
था सबने. फ़िलहाल का हॉट टॉपिक शालिनी ही थी. गलती से उसका कोई मेल कलीग घर आ जाये
तो आसपास के लोग अफवाह उड़ा दे कि “दोनों का कोई चक्कर है. ये तो लव मैरिज ही
करेगी.”
एक जगह बात फाइनल
हुई तो लोगों के मुँह का निवाला छिन गया. लड़का महीनों तक शादी के लिए टालमटोल करता
रहा तो शालिनी को पता चला कि उसका कहीं और अफेयर है; घरवालों के दबाव में उसने
सगाई कर ली. सतीश जी को ये रिश्ता तोड़ने में ही भलाई नजर आई. अब लोगों को फिर से
मजा आ गया. पहले तो सब इस बात पर टिप्पणी कर रहे थे कि “सतीशजी को इतनी दूर सगाई
नहीं करनी चाहिये थी. अंजान लोग तो धोखा ही देंगे. फिर सगाई में इतना खर्च नहीं
करना चाहिये था. बेकार में लाख रूपये का नुकसान हो गया. कुछ लोगों ने तो दबी जुबान
में यहाँ तक कहा कि, लड़के में कोई कमी नहीं थी, शालिनी ने ही अपने तेज स्वभाव के
कारण उसे रिजेक्ट कर दिया.”
जितने मुँह उतनी
बातें. अब इन मूर्खों को कौन समझाये कि हर पिता अपनी बेटी के लिए बेहतर छानबीन
करके ही रिश्ता करता है. फिर अगर सगाई तोड़ने जैसा निर्णय खुद लेता है तो भी अपनी
बेटी के हित में ही! भले ही रुपयों का कितना भी नुकसान हो लेकिन बेटी गलत जगह जाने से
बच गई – ये सांत्वना किसी ने नहीं दी. रिश्तेदारों से लेकर पडौसियों तक ने
व्यंग्यबाण चलाये.
शालिनी भी सतीशजी की
ही तरह मानसिक रूप से बहुत मजबूत थी. इन बातों से उसका स्वाभिमान और संतुलन कई
गुना बढ़ गया. ये बात देखने वालों को और नागवार गुजरी. अब कानाफूसी होने लगी, “देखो!
कितना तनकर चलती है. सगाई टूटने का तनिक भी दुःख नजर नहीं आता इसके चेहरे पर. बाकी
दुनिया को तो कुछ समझती ही नहीं.”
सुभद्रा कुछ ज्यादा
ही भावुक थी. बाप-बेटी की तरह लोगों के भौकने को नजरंदाज नहीं कर पाती थी. एक दिन
फिर रिश्तेदारों ने उसे घेर लिया. कहने को तो वो सभी महिलायें भी माँ थी पर किसी
माँ का दर्द समझने के बजाय वो महज ईर्ष्यालु औरते होना ज्यादा जरूरी मानती थी.
बातों के तीर शुरू हुए, “क्या बात है मामीजी! लडकें तो कई देखने आते है शालिनी को
पर हाँ कोई नहीं कहता?”
“हाँ सुभद्रा भाभी;
मुझे भी समझ नहीं आता आखिर शालिनी में क्या कमी है. दिखने की अच्छी है, पढ़ी-लिखी
है. इकलौती है तो दान-दहेज़ भी अच्छा ही दोगे आप!”
“अब सुभद्रा ताईजी
भी क्या करे; ग्रह-नक्षत्र ही इतने कड़क है शालिनी के! किसी से जन्मपत्री ही नहीं
मिलती.”
“आप भी क्या जिद
लेकर बैठे हो जाति-समाज में ही करेंगे. अदर कास्ट में कर दो कोई अच्छा लड़का देखकर.”
“अरे! आपने अभी तक
वो गणपति को लड्डू चढ़ाने वाली पूजा नहीं की क्या? शालिनी से कहो मंदिर से चुपचाप
पार्वती माता के वस्त्र चुरा लाये.”
“मेरी सोना ने तो
सोलह सोमवार किये थे. सोलहवाँ व्रत होते ही सगाई हो गई. आज सुखी है अपने घर में!”
सुभद्रा मूर्ति बनकर
सुनती रही. बाण आकर उसके कलेजे पर चुभते रहे और वो आँसू पीती रही. घर आई तो उदास
थी. सतीश जी भी समझ रहे थे और शालिनी भी; पर लोगों की जुबान पकड़ना उनके वश में न
था. फिर लोगों को जवाब देकर उन्हें कीचड़ में पत्थर फेंकना भी गवारा नहीं था. ऐसे
टुच्चे लोगों के क्या मुँह लगना.
सुभद्रा का बी पी
लगातार लो रहने लगा था. एक दिन शालिनी ने रोते हुए कहा, “पापा! आप जल्दी किसी से
भी रिश्ता तय कर दो. मुझसे माँ की हालत देखी नहीं जाती. माँ को कहीं कोई बीमारी लग
गई तो मैं कभी खुद को माफ़ नहीं कर पाऊँगी. मैं कर लूंगी एडजस्ट किसी के भी साथ!”
“बेटा! जिंदगी जीने
के लिए मिली है; एडजस्ट करने के लिए नहीं. कुछ मूर्खों की बकवास से डरकर मैं कोई
भी निर्णय जल्दी में नहीं लूँगा भले ही मुझे कुछ भी सुनना पड़े, ‘जमीं राज की बेटी
बाप की!’ जब, जो पसंद आयेगा उसी से करूंगा संबंध!”
“अब तो लोग बड़ी उम्र
के और तलाकशुदा रिश्ते भी बताने लगे है.” सुभद्रा को रोना आ गया.
“सुभद्रा! ये वो लोग
है जो हमारी बेटी की योग्यता और गुणों से जलते है और हमारा मनोबल तोड़ना चाहते है.
तुम रोकर उन्हें मजबूत कर रही हो. उन्होंने कर दी अपनी बेटी की सगाई कहीं भी
क्योंकि उनकी बेटियाँ साधारण होंगी पर मेरी बेटी स्पेशल है. बाकी ईश्वर की मर्जी!
मुझे उनका हर विधान मंजूर है पर लोगों के आगे झुकना मंजूर नहीं है.”
“बेटी जन्मी हमारे
घर; खाती-पहनती हमारा है. पढाया हमने है फिर इसकी सगाई का निर्णय लेने वाले पराये
कौन होते है. कहावत है - घर की बेटी गाँव पर भारी. मेरी बेटी औरों की नजरों में
क्यों खटकती है.” सुभद्रा का रोना जारी था.
“इसलिए कि ज्यादा
पत्थर उसी पेड़ को मारे जाते है जिस पर ज्यादा फल होते हैं. कुछ बात है कि मिटती
नहीं हस्ती हमारी; सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहाँ हमारा!” शालिनी ने हँसकर कहा.
“देखो सुभद्रा;
तुमने इतनी समझदार बेटी को जन्म दिया है. तुम्हें इस पर गर्व होना चाहिये; न कि कुत्तों
के भौंकने पर शर्म आनी चाहिये.”
दोस्तों! अगर किसी
लड़की की सगाई नहीं हो रही है तो उसके पीछे कई ऐसे कारण होते है जो आपको नजर नहीं
आते. बिना समझे किसी पर टिप्पणी न करें. कभी-कभी कर्म से ज्यादा भाग्य प्रबल होता
है और भारतीय संस्कृति में कहा गया है कि शादी पूर्वजन्म का रिश्ता होता है अत: आप
किसी के भाग्य में आ रही अड़चन का मजाक न बनाये.

शानदार संदेश देती है...बेटियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनता है...
ReplyDeletedhanyvad...
DeleteAapki is kahaani ne dil ko chu liya..... Kuch esa lga ise padh kar .. Jese apna kirdaar jee rahi hu me..... Isi tarah pragati karte rahe aap. Subh kaamnaaein or Saadhuwaad aapko....
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