आत्मबल



काश! इक बार तू उस चोले से निकल आता,

काश! तू खुदमुख़्तार-सा इक इन्सान हो पाता,

मुझे तेरे कठपुतलियों-से नाचने पर ऐतराज है,

मेरा आत्मबल तेरी नजर में ना अह्मों-खास है,

मैं तेरी लहर से दूर, इक सशक्त नदी बन गई,

बनकर पिछलग्गू, तेरी तो हस्ती ही मिट गई,

फिर भी उस भुलावे की दुनिया में तू खुश है,

इसलिए ख्याल आया, क्या तू मेरे काबिल है?

तू अमरबेल-सा परजीवी, पनप न पाया,

मैंने मंजिल के लिए अकेले कदम उठाया,

न तू सहारा बन पाया न ही आत्मदीप,

फिर भी चाहता है मैं वार दूं अपनी प्रीत,

मुझे तेरा यूँ शासित होना रास न आया,

साथ रहा पर तू दिल में न उतर पाया.


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