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Showing posts from May, 2020
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11. चाँद कासिद पुराना    संदली हवा का झोंका इक पैगाम लाया, खुशनुमा-से खयालों की सौगात लाया, खोला जब लिफाफा मैंने तो, हैरत-भरी आँखों को घूरते पाया, अचकचाकर जब नजरें नीची कर ली, उसकी हँसी की खनक से दिल रोशन पाया, उन आँखों में हैरत के साथ कुछ नशा घुला था, मैंने पहली बार ख़ुद को मयखाने में पाया, लाखों बार चेहरा धोने पर भी नशा गहरा पाया, उन दो जोड़ी आँखों में ब्रह्मांड नजर आया, गुलाबी होठों की रंगत भी अब तक कहाँ भुला पाया, ख़ुद को उस पैगाम से बावस्ता पाया, अनकहे शब्दों के जादू में मन बंध गया, गर शब्द होते तो जन्नत को भी दीगर पाया, या खामोशी का नशा इतना गहरा होता है कि, लाख सोचने के बाद भी जवाब न दे पाया, क्या संदली झोंके के साथ जवाब भेजूँ, या आवारा बादल मुनासिब होगा, चाँद तो पुराना कासिद; थक गया होगा, जर्द पत्ते क्या ऱाजदार होंगे, खुद जी न पाये जो क्या खाकसार होंगे, बारिश बहा न दे मेरे अरमानों को, तूफां डुबो न दे आस की कश्ती को, किस पर करूं भरोसा, किसे कासिद का किरदार दूं, शह और मात के खेल इश्क में, क्यों न खुद को उस पर वार ...
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10. आत्मा की प्यास आज तन-मन पर एक लगन तारी है उस मधुर तान में खोने की तैयारी है वो बैठा निश्छल , मुझको पास बुलाता है हमारे जन्मों के प्रेम की दुहाई देता जाता है मैं प्रस्तुत हूँ आँखे बंद किये वहाँ जाने को पर डरती हूँ , क्या जवाब दूंगी जमाने को वो प्रताड़ित करते रहे मीरा सदृश संत को फिर कैसे छोड़ देंगे मुझ सदृश कोमलांगी को “ प्रेम का बल सब मुश्किलों से लोहा लेता है ” उसका आत्मबल मुझे यूँ उकसाता है सत्य ही वही तो इस सृष्टि का एकमात्र दाता है कब तक छिपूंगी , मुझे बढ़ाने होंगे कदम फिर वो उठेगा और थाम लेगा मुझे एकदम काश मैं समझा पाती ये देहातीत अहसास है स्पंदित होता तन , पर ये आत्मा की प्यास है |
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9.  दिव्य विजय काश , जीवन कुछ ऐसा उन्मादी हो जाये काश , इक दिव्य विजय की तैयारी हो जाये ना जीतना है इस जग के महल-खजाने को प्रस्तुत होना है , सोई चेतना को जगाने को उस लम्बी यात्रा में मैं सफल हो जाऊं आगामी पथिकों के लिए लाइट हाउस बन जाऊं ज्यों ध्रुव तारे ने भटकों को मार्ग दिखाया है उस दिव्य पथ को कोई भी औचक पकड़ न पाया है खो जाते हैं कई पथिक विस्मृत होकर थक जाते हैं आधी मंजिल तय कर मैं बनूं नियंता उन थके-हारों की   स्व-प्रकाशित हो प्रदर्शक बनूं उन दीवानों की नाम जप या हठयोग , कोई भी आलंबन ले लो पर इस दिव्य यात्रा को मध्य में मत रोको ऐसी लाइट हाउस बन उस दिव्यात्मा को पा जाऊं सबको राह दिखाकर दिव्य विजय की भागी हो जाऊं |
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8.  ऐसी दीवानों सी हालत कर लूं   हाँ मैं लिखती हूँ , जब बाहर कोई नहीं होता हाँ मैं लिखती हूँ , जब भीतर वो बसता है यूं विलग नहीं वो , मेरे अस्तित्व का हिस्सा है पर कितनी शिद्दत से दस्तक दे , यही सारा किस्सा है | हाँ मैं हंसती हूँ जब वो मुझे सितारों के जहाँ में ले जाता है हाँ मैं तरसती हूँ जब वो मन की आँखों से ओझल हो जाता है उस छलिये ने राधा मीरा को भी ऐसे ही भरमाया है कभी मैं इस विचित्र प्रेम से घबराती ये कैसी माया है क्यूँ यूं ही वो अनायास आकर हृदय पटल पर अठखेली करता है ‘ तुम मेरा ही अंश हो ’ हौले से कहकर मन को आंदोलित करता है ‘ हर जन्म में मैंने तुम्हें यूं ही अपनाया है इस रिश्ते को अनाम रखकर तुम मुझे मान दो ’ यही मेरी प्रत्याशा है उठ रही हूँ जकड़न भरे रिश्तों से ऊपर कर रही हूँ उस निराकार का आलिंगन क्या चैतन्य रहने का इतना खूबसूरत ईनाम मैंने पाया है या वो छलिया खुद मुझे बाहुपाश में बांधने आया है | वो मेरी कलम का विस्तार है विराम वो मेरे विचारों का सरताज है या आधार क्यूं न इन प्रश्नों को भूलकर उसे सर्वस्व समर्पण कर दूं क्यों न अपन...
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7.  दर्द का नगमा काश मिला होता तू मुझे उस तपती धूप में तो सफर आसां हो जाता, तेरा नाम ही मेरे छलनी जिगर का सहारा हो जाता, मरुस्थल का एक दरिया पार कर इस मुकाम पर पहुंचा हूँ, इस राह में तू कुछ और नहीं तो मेरे पाँव का छाला हो जाता, तुझे देखकर बार-बार अपनेपन का अहसास पुख्ता होता है, हमनवा न सही तू मेरे लिए तिनके का सहारा हो जाता, जब कभी क्लांत पैरों में वो तपिश ताज़ा होती है, मेरे साज पर दर्द का नगमा गवारा हो जाता है, एक हम हैं जो समूचे लुट गये इश्क में, इक वो है जो हमारे दर्द से किनारा कर गये, गिला फिर भी मेरी फितरत का हिस्सा नहीं है, एक वो हैं जो शिकायतों का अम्बार खड़ा कर गये, फिर भी सफर पर मेरे पैर रुक न पाये, मैंने मंजिल की ओर से कदम न भटकाए आहिस्ता-आहिस्ता अपने ही सहारे बढ़ता चला मैं, ख़ुद को खुदा का फ़रिश्ता समझता रहा मैं, कोई हालात डिगा न पाये मेरे रूहानी सफर को, बस उसे देखकर अक्सर ये खयाल आता है, क्या मेरा उससे कोई पिछले जन्म का नाता है, बस इसीलिये ये दिल उसकी आशनाई का मारा है, मुझे सपनों में भी उसके तसव्वुर का सहारा है, दुनियावी ह...
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6 . सितारों का जहां   वो शोख अल्हड़पन का दौर पीछे छोड़ आई हूँ, तापसी बनने के सफर में कुछ शौक भूल आई हूँ, वो पहली बारिश में भीगने का जूनून, लगता है अब काफी दूर निकल आई हूँ| कहाँ गई वो फूलों को छूने की सिरहन, अब काँटों से भी निर्लिप्त होने की फितरत, किसी के रूठने पर दिल का नाखुश होना, अब टूट भी जाये कोई तो बेखुदी में रहना| रंजिशों-गम से बेजार लोगों से तकल्लुफ़, क्यों बार-बार किस्मत पर बेकार रोना, पासबां का पास होना भी बेकार होना, बस उसी की खुदी का इल्म होना, बेसबब ही जमाने को दर्दे-दिल का दोष देना, अपनी नाराजगियों को माकूल-सा चोला पहना देना, बुझे दिल के इल्जामों के दौर उसके सिर मढ़ना नूर जागने से पहले शमा बुझा देना| वो दुनिया भरम की थी या मैं जाग गई हूँ, वो खुद से बतियाने का दौर; मैं कहाँ आ गई हूँ, अब तो ये तामीर हावी है कि मैं चलते-चलते सितारों के जहाँ में आ गई हूँ|
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5.  यादों का मेला     जब भी रंजिशों-रुसवाई का दौर चलता है, उसकी याद का मेला मेरे जेहन में लगता है, उस मेले में कनखियों के ऊँचे झूले सजते है, दिल टूटने- जुड़ने के खिलौने बिकते हैं, वादों- मनुहारों की कठपुतलियों के खेल चलते है, चाट के चटखारें याद जवां करते हैं, तमाशे देखकर बेसाख्ता हंसते हुए, गुड्डे-गुड़ियाँ के ब्याह सच्चे लगते हैं, हकीकत से रूबरू हो ख्वाब ओंधे मुंह गिरते है, ऐसे आलम में मेले भी सूने लगते हैं, उस लाखों की भीड़ में खो जाने का दिल करता है, फिर घबराकर घर लौट आने का दिल करता है, बुत को भी खुदा बना दिया इश्क ने वो जताना अब वाहियात लगता है, निशब्द रहकर आँसू पीने का दौर चलता है, इश्क भले न छिपे दुनिया की नजर से, पर आशिक को तो मौन ही फबता है, लोग जब भी बेसबब सवाल करते हैं, आशिक के दिल में वो मेले सिसकते हैं, विसाले-यार का चर्चा नागवार गुजरता है, लाख शिकवों के बाद भी वो भला लगता है, कच्ची उम्र का सूनापन बेजार भले ही करता है, अनजानी आस का दीया बिला नागा दिल में जलता है, मालूम है वो गया है न आने के लिए फिर क्यों इंत...