11. चाँद कासिद पुराना संदली हवा का झोंका इक पैगाम लाया, खुशनुमा-से खयालों की सौगात लाया, खोला जब लिफाफा मैंने तो, हैरत-भरी आँखों को घूरते पाया, अचकचाकर जब नजरें नीची कर ली, उसकी हँसी की खनक से दिल रोशन पाया, उन आँखों में हैरत के साथ कुछ नशा घुला था, मैंने पहली बार ख़ुद को मयखाने में पाया, लाखों बार चेहरा धोने पर भी नशा गहरा पाया, उन दो जोड़ी आँखों में ब्रह्मांड नजर आया, गुलाबी होठों की रंगत भी अब तक कहाँ भुला पाया, ख़ुद को उस पैगाम से बावस्ता पाया, अनकहे शब्दों के जादू में मन बंध गया, गर शब्द होते तो जन्नत को भी दीगर पाया, या खामोशी का नशा इतना गहरा होता है कि, लाख सोचने के बाद भी जवाब न दे पाया, क्या संदली झोंके के साथ जवाब भेजूँ, या आवारा बादल मुनासिब होगा, चाँद तो पुराना कासिद; थक गया होगा, जर्द पत्ते क्या ऱाजदार होंगे, खुद जी न पाये जो क्या खाकसार होंगे, बारिश बहा न दे मेरे अरमानों को, तूफां डुबो न दे आस की कश्ती को, किस पर करूं भरोसा, किसे कासिद का किरदार दूं, शह और मात के खेल इश्क में, क्यों न खुद को उस पर वार ...