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Showing posts from September, 2020

इस तकनीक में छिपा है अच्छी नींद लेने का राज

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  नमस्ते दोस्तों! आपको तो पता ही है कि मैं एक योग इंस्ट्रक्टर हूँ. जहाँ भी जाओ सभी अपने लिए आसन पूछने लगते हैं. मुझे सबकी मदद करने से आत्मिक ख़ुशी भी मिलती है. लेकिन तकलीफ ये है कि लोग जितना बढ़-चढ़कर पूछते हैं उतना फ़ॉलो नहीं करते. फिर भी अपना काम तो बताना है. चलिये आज आपको स्ट्रेस रिलीज का बेहद सरल उपाय बताती हूँ. इसके लिए आपको बस एक पेपर और पेन लेना है. चार सेक्शन बनाने है. पहले पर लिखना है ‘स्वयं’                    दूसरे सेक्शन पर ‘घर’,                    तीसरे सेक्शन पर ‘जॉब’,                    चौथे सेक्शन पर ‘रिलेशंस’. अब पहले सेक्शन में लिखिये कि मेरा तन-मन कितने पर्सेंट स्वस्थ है. खुद को नंबर दीजिये. मुझे बॉडी चेकअप करवाना चाहिये क्या?? क्या मैं रेगुलरली योगाभ्यास/ मेडिटेशन/ वाकिंग कर रही हूँ क्या? मे...

आईना छिपा लिया

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    रंजिशों-गम की रात थी, उसे शिकायतें बेहिसाब थी, कहने को बहुत कुछ था, सुनने को कहाँ कम था, वो अपनी आदत से बेजार, मैं ठहरी मौन की रसूखदार, अब रात परेशां होती-सी, सुबह की ओर सरकती-सी, जब शब्दों में बातें ढलने लगी, मैं कुछ खुद में सिमटने लगी, मेरे खाते सारे कत्थई थे, गुनाहों की दास्तां कहते थे, वो गिना रहा था दोष मेरे, इस पर होठ सिले रहे मेरे, कोई भी सफाई बेकार थी, मैं खुद में पाक-साफ़ थी, पर मैं जब्त कर गई, वो जद्दोजहद जीत गई, अपना आँचल मैंने सहला लिया, साथ लिया आईना छिपा लिया.

जो अपना बन जाये; वही सहारा

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  उपमा और अनुज की शादी को पूरे सात साल होने को आये लेकिन उन्हें माँ-पापा बनने का सौभाग्य नहीं मिला. जब उपमा के देवर की शादी हुई तो सोनाक्षी घर में छोटी बहू बनकर आई. दो महीने बाद ही जब उसके प्रेग्नेंट होने की खबर मिली तो पूरे घरवालों की खुशियाँ चौगुनी हो गई. उपमा उसका बहुत ख्याल रखती. उसके खाने-पीने से लेकर उसकी हर सुविधा के बारे में सचेत रहती. सोनाक्षी के मन में उसकी दीदी ने ये बात डाल दी थी कि भविष्य में उपमा उसके बच्चे पर अधिकार जमाना चाहती है इसलिए इतनी अच्छी होने का दिखावा कर रही है. अब सोनाक्षी खुद को लेकर काफी पजेसिव हो गई थी. जब भी उपमा उसकी मदद करती, वो दूर-दूर होने की कोशिश करती. एक दिन उपमा बाजार से होने वाले बच्चे के लिए बड़े चाव से कपड़े ले आई तो सोनाक्षी ने नाक सिकोड़कर कहा, “क्या भाभी! आपकी चॉइस एवरेज है. मेरा बच्चा ऐसे कपड़े नहीं पहनेगा. उसके नाना उसके लिए बहुत शानदार कपड़े लायेंगे.” उपमा ने बिना एक शब्द कहे, वो सब कपड़े अपनी अलमारी में लाकर रख लिए और कृष्ण की बड़ी-सी तस्वीर को भरपूर निहारकर मन ही मन कहा, “अब तुम्हीं जानो कि ये कपड़े किसे पहनाओगे! अगर मेरी सूनी गोद ही तु...

कुत्तों के भौंकने पर क्या ध्यान देना

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  “अरे अनीता! तू चाहे कितने भी बड़े शहर में रह, चाहे जितना रुपया कमा ले, कितनी भी मॉडर्न बन जा; सच्चाई यही है कि अगर तूने इस खानदान को बेटा नहीं दिया तो सब धूल है. पितरों को मोक्ष तभी मिलता है जब बेटा पानी देता है. शास्त्रों में ऐसा कोई विधान नहीं है कि बेटी सोलह संस्कार करवाये. बेटी के घर का तो पानी पीना भी वर्जित है. माना तेरी दोनों बेटियां बहुत सुन्दर है, पढने में भी होशियार है पर है तो पराया धन ही ना. बुढ़ापे में कौन करेगा तुम दोनों की सेवा. कोई पानी देने वाला नहीं रहेगा. दोनों सूने घर में तरसते हुए मर जाओगे. कैसे गति होगी तुम्हारी.” सीता भुआ ने अपना अर्जित ज्ञान बाँटा. “पीछे कोई रहेगा नहीं तो सीख-बाड़ी आना भी बंद हो जायेगी रिश्तेदारों के यहाँ से! फिर पछताओगे कि एक चांस और क्यों नहीं लिया. तीन ऑपरेशन की इजाजत तो डॉक्टर देते ही हैं. हमें देख पूरे पाँच बच्चे पैदा किये. सब अपनी किस्मत लेकर आते है. कोई भूखा नहीं मरा.” ग्यारसी जीजी ने बात का समर्थन किया. “अरे! पहले मुझे बताती; ऐसी दवा दिलवाती कि शर्तिया बेटा होता. तीसरे महीने में लेनी होती है गाय के दूध के साथ. इस बार बता देना. मैं...

आपकी बेटी की सगाई क्यों नहीं हो रही?

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  “पता नहीं सतीश भैय्या और सुभद्रा को कैसे नींद आ जाती है. पूरे 30 की होने आई शालिनी. यहाँ तो अनु के 18 पूरे करते ही मुझे इसकी शादी की ऐसी चिंता लगी कि दो साल में ब्याहकर ही दम लिया.” रूपा ने अपने देवर-देवरानी की शिकायत अपनी बड़ी ननद को की. “पर रूपा! अनु की जिंदगी सुखद तो नही रही. न पढाई पूरी हुई और जल्दी माँ बनने से अनगिनत रोग लग गए शरीर में. तुम थोड़ा तो रूकती.” “तो शालिनी का शरीर कौनसा हृष्ट-पुष्ट रहेगा. बड़ी उम्र में तो माँ बनना ज्यादा मुश्किल हो जाता है.” “बात वो भी सही है लेकिन इसमें सतीश और सुभद्रा की क्या गलती है? वे तो पिछले छ सालों से लड़का देख रहे है लेकिन आजकल जन्मपत्री मिलान का ऐसा रिवाज चल गया है कि कोई समझौता करने को तैयार नहीं. पर इस बीच में शालिनी ने सी ए, एम बी ए करके जॉब शुरू कर दी है. ये मुझे बड़ा अच्छा लगा.” “हाँ; उसी जॉब के कारण तो उसके नखरे बढ़ गए है. मेरे भांजे का शानदार बिजनेस है. रिश्ता भेजा पर मना कर दिया सतीश भैय्या ने. करोड़ों का बंगला है, गाड़ी, नौकर-चाकर सब है.” “पर लड़का तो सिर्फ बारहवी पास है. इतने कम पढ़े-लिखे को कैसे बेटी दे दे. रिश्ता बंगला देखकर...

लगा इसके बाप को फोन!

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  शादी से पहले जब भी कुसुम आस-पड़ोस में पति-पत्नी के झगड़ें और सास-ससुर की दखलंदाजी की बातें सुनती तो उसे आश्चर्य होता कि ऐसा कैसे हो सकता है? कोई भी बात हो शांति से सुलझाई जा सकती है. हम घर की मेड को भी बड़ी तवज्जो देते हैं कि कहीं छोड़कर न चली जाये! फिर शादी तो एक धार्मिक और कानूनन संबंध है जिसे निभाने के लिए दोनों पक्षों को बहुत-से समझौते अनायास ही कर लेने होते हैं फिर न जाने ये मनमुटाव सार्वजनिक कैसे हो जाते हैं. रिश्तेदारों और पडौसियों को तो मुफ्त के चटखारे मिल जाते हैं बस! उसे कभी अपनी माँ और भाभी के बीच तकरार देखने को नहीं मिली. बहुत ही सुलझे स्वभाव की कुसुम जब बहू बनकर सोनी परिवार में आई तो बिल्कुल आश्वस्त थी कि सास-ससुर जरूर उसकी सेवा से संतुष्ट हो जायेंगे और छोटी ननद रीमा तो उसे किसी सहेली की कमी महसूस ही नहीं होने देगी. बचे पतिदेव – आशुतोष, तो वो तो शिवजी की ही तरह इतने भोले है कि जो बोलो वही सही मानते है. पर शादी के दो ही हफ़्तों में उसे पता चल गया कि ससुराल में सिक्का जमाना कोई बायें हाथ का खेल नहीं है. वो भी वहाँ; जहाँ ससुर और पति – दोनों; सास शांति जी के हाथ की कठपुतल...

एक बुरी आदत घोले गृहस्थी में विष

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  रैना ने आज ही ऑफिस ज्वाइन किया था. जॉब तो वो हमेशा से करती थी पर आज पूरे एक साल के ब्रेक के बाद उसने ये नई जॉब ज्वाइन की थी. इस बीच में उसे आरव के रूप में प्यारा-सा बेटा मिला. आज उसे क्रेच में छोड़कर आई थी इसलिए मूड ऑफ था पर क्या करें मजबूरी ही ऐसी थी कि जॉब करना भी जरूरी था. लंचटाइम में वो आरव के साथ वीडियो कॉल पर थी. पिछले 15 दिनों से वो उसे रोज क्रेच ले जा रही थी ताकि वो वहाँ एडजस्ट कर सके. बेटे को खुश देखकर उसने लंच शुरू किया ही थी कि सामने की टेबल पर मोहित को देखकर वो उसे ठीक-से पहचानने की कोशिश कर रही थी. आठ साल पहले दोनों एक ही क्लास में थे. तभी मोहित भी उसे देखकर हाथ हिलाता हुआ उसी के सामने आकर बैठ गया. “व्हाट आ ब्यूटीफुल सरप्राइज रैना! कैसी हो?? यहाँ कब ज्वाइन किया???” सुबह से लेकर अब वो दिल से मुस्कुराई थी. “आज ही ज्वाइन किया मोहित! तुम यहाँ कबसे हो?? आज तो वाकई मजा आ गया. इतने सालों बाद मिले हैं. घर पर कौन-कौन है?” “मैं तो तीन साल से यही हूँ. शादी हो गई. एक बिटिया है. माँ-बाऊजी भी यहीं शिफ्ट हो गए हैं. सब बढ़िया चल रहा है.” “वाह! परिवार के साथ रहने का मजा ही कुछ ...

हाय बहू! तूने पति का नाम लिया

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“क्या दीदी आप भी जब देखो “उन्होंने, इनने, ये” कहते रहते हो जीजू को; जैसे उनका कोई नाम ही न हो! ” मिताली ने हँसकर कहा. “तो क्या नाम लेकर आवाज दूँ? कहते है नाम लेने से पति की आयु कम होती है. तेरी भी अब शादी वाली उम्र है. आगे ध्यान ही रखना.” “मैं नहीं मानती इन दकियानूसी बातों को.” “तेरी सास सब मनवा देगी. किसी भी माँ को ये बर्दाश्त नहीं होता कि उसकी बहू, उसके बेटे का नाम ले. चल अभी बहस छोड़; मुझे इनके लिए खाना बनाना है.” दो साल बाद मीनल की शादी आकाश से तय हो गई. कोर्टशिप के दिन बेहद मजेदार गुजर रहे थे. “रफ्ता-रफ्ता वो मेरी हस्ती के सामां हो गए; पहले जाँ फिर जानेजां फिर जानेजाना हो गये” - इसी तर्ज पर पहले दोनों आप से तुम पर आये और अब वो उसे मीनू तो वो उसे अक्की कहकर बुलाने लगी. अब विदा होकर मीनल ससुराल आ गई. पूरा हफ्ता मेहमानों के आने-जाने में गुजर गया. उसकी सास कांति जी उसे बराबर नोट कर रही थी. आखिर उन्होंने उसे सख्त हिदायत दे ही दी कि वो आकाश को नाम लेकर बिल्कुल न पुकारे. एक दिन आकाश सेटरडे को भी ऑफिस गया था और मीनल की छुट्टी थी. कांति जी ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी और उन्हें डिजि...

अपनी बहू सबको प्यारी/ हम क्यों मना करके बुरे बने

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  “ये क्या रेनू; पौंछा तो लगाती जा! दीपावली को पूरा परिवार साथ खाना खाता है इसका ये मतलब तो नहीं कि मेरे घर में गंदगी फैली रहे.” सविता ने अपने देवर की बहू को टोका. “ताईजी; आरव को बुखार है. चार घंटे से उसे मम्मी ही संभाल रही है, उन्हें उसकी दवा का पता नहीं है इसलिए जा रही हूँ, नहीं तो मैं हमेशा पूरा काम करके ही जाती हूँ.” रेनू ने पल्लू से पसीना पौंछते हुए कहा. “पर तुझे मेरी तबियत का तो पता है ही; दो दिन तक मेड भी नही आयेगी.” हारकर उसने पौंछे की बाल्टी उठाई. मोबाइल बार-बार बज रहा था. उसने अनदेखा करके 15 मिनट में झटपट पौंछा लगाया और घर की ओर दौड़ी. आरव ने बहुत देर से कुछ नही खाया था. जल्दी से उपमा बनाकर उसे खिलाया. दवाई दी और और अपनी सास को ताईजी की पौंछे वाली बात बताने लगी. “तू तो अब आई है रेनू! मैं तो पिछले तीस साल से उनका ये स्वभाव देख रही हूँ. शरीर सिर्फ उनका दुखता है, बाकी तो सब उनकी नजर में रोबोट है. जब हम जॉइंट में रहते थे तब भी ऐसे ही मुझसे सारे काम करवाती थी. पिछले दस साल से अलग होकर कुछ चैन आया है.” “मम्मीजी! अब जब अलग रहते है तो त्यौहार भी अलग क्यों नहीं मनाते? श्र...